पंद्रह साल
कहाँ वे हरी आँखें
गुलाबी होंठ
मीठी गीली आवाज़
बरखा ऋतु की पुरवाइयों सी चाल- ढाल
कहाँ यह रुखा , खुरदरा , बेजान
कठोर , असुंदर आदमी
वह जो प्राकृतिक रंग था त्वचा का उड़ गया था
एक और ही रंग की हो गयी थी शरीर की चमड़ी
बीते पंद्रह सालो की मृतता से बनी
बीते पंद्रह सालो की जीवंतता से बनी होती यह चमड़ी
कोई और ही रंग होता इसका
लिभाता हुआ अपनी आब से अपनी प्रियता से
तब एक ही मलाल की तरह नहीं पुता होता चहरे पर
कहाँ पच्चीस कहाँ चालीस
तब यही छलकता होठों पर
चालीस की उम्र का भी कमबख्त
एक अपनी ही तरह का असर
एक अपनी ही तरह का आकर्षण होता है
सुनिए तो यह किसकी नींद कराह रही है
कोई जरुरत नहीं थी मुझे इन पंद्रह सालों की
प्रभात (Poet)
जयपुर के एक गाँव में जन्म... राजस्थान की नई पीढ़ी के प्रतिनिधि कवि है.... एक कविता संग्रह -'' बनजारा नमक लाया'' पिछले साल आया.... वे ग्रामीण चेतना के मुखर कवि है, इन दिनों सवाई माधोपुर में एक NGO के साथ जुड़े है और बालपत्रिका 'मोरंगे' का संपादन कर रहे है . इस साल कविता के लिए राजस्थान पत्रिका के साहित्य पुरस्कार से नवाजे गए हैं
निधि सक्सेना (Artist)
वे मूर्तिकार और फ़िल्मकार हैं, जयपुर में जन्मी , कविताएं लिखती है टीवी सीरियल बनाये हैं, इन दिनों अखबारों और मेगजीन्स की भी सक्रिय लेखिका है .मुम्बई में रहती है.
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